आत्म-निर्भरता

 आत्म-निर्भरता

लेखक ने 'आत्म-निर्भरता' की संक्षेप में परिभाषा बताई है, वह कौनसी?
सफल जीवन का नैसर्गिक, अन्तिम किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त , एक प्रकार से सफलता का प्राण, सफलता की मुख्य कुंजी है आत्म-निर्भरता और आत्मविश्वास।

'दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं' ऐसा लेखक ने क्यों कहा है?
यह एक सच्चाई है, एक सत्य है, तुम स्वयं प्रयोग करके देख लो। निश्चय से, पूर्ण निश्चय से, अपने ऊपर निर्भर करो और फिर जगत् में तुम्हें कुछ भी दुर्लभ नहीं, तुम्हारे लिए दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं।

एक ही हाथी बीसों शेरों को मिट्टी में मिला सकता है । लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
वे अपने को शक्तिहीन मानते हैं।

एक भाई दरिद्रता की सीमा पर तो दूसरा अमीरी की सीमा पर। ऐसा क्यों?
एक भाई हर समय नौकरों से कहा करता था- 'जाओ, जाओ और यह काम कर लाओ।' इतनी आज्ञा देने के अतिरिक्त उसने कभी गुदगुदे मखमली गदा से नीचे पैर नहीं रखा। दूसरा सदा कमर कसे अपने काम में जुटा रहा। उसने अपन नाकरो से कहा- 'आओ, आओ, इस काम में मेरा हाथ बटाओ।' वह शक्ति पर निर्भर करता और शक्ति भर नौकरों से काम लेता था। फल यह हम उसकी सम्पत्ति कई गुना बढ़ गई। दूसरा अपने नौकरों से 'जाओ, जाओ' ही कर रहा। वे चले गए और उसकी आज्ञा मानकर उसकी सम्पत्ति भी बिदा हो गई अन्त में रह गया वह बिलकुल अकेला।

स्वर्ग के आदनन-कानन में परिणत हो जाने का कौनसा मंत्र बताया गया है?
एक बार इस प्रत्यक्ष करो और तुम सदा सफलीभत हो।

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